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तुलसीदास का जीवन परिचय class 10 in short
मेरे प्यारे दोस्तों कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी का संक्षित जीवन परिचय जो यहां पर उपलब्ध कराया जा रहा है। इसे आप तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ प्रश्नों के उत्तर देने के लिए यह पोस्ट पर्याप्त है।
संक्षेप में तुलसीदास का जीवन परिचय ExamsPreps.Com | |
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नाम | तुलसीदास |
जन्म का वर्ष | 13 अगस्त सन् 1532 ई. (संवत् 1554 वि.) |
जन्म का स्थान | राजापुर |
पिता का नाम | आत्माराम दुबे |
माता का नाम | हुलसी देवी |
पत्नी का नाम | रत्नावली |
गुरु का नाम | संत बाबा नरहरिदास |
लेखन विधा | काव्य |
प्रमुख रचनाएं | जानकी मंगल, पार्वती मंगल, रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, इत्यादि |
भाषा | अवधी , ब्रज भाषा |
मृत्यु | 1623 ई० (संवत 1680 वि०) |
मृत्यु का स्थान | वाराणसी (UP) |
हिन्दी साहित्य में स्थान | एक महान लोकनायक तथा सफल पारखी के रूप में सर्वश्रेष्ठ कवि |
Starting of Tulsidas Ka Jivan Parichay class 12 in Hindi
कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी के नाम से विश्व का जन-जन सुपरिचित है। तुलसीदास जी हिन्दी साहित्य के मार्तण्ड हैं। लोक नायक तुलसी दास जी ने मानव प्रकृति के जितने रूपों का हृदय स्पर्शी तथा सूक्ष्म चित्रण किया है, उतना किसी अन्य कवि से सम्भव न हो सका। आपने अपनी अद्भुत काव्य-प्रतिभा द्वारा हिन्दी काव्य को अपूर्व गौरव एवं अमरत्व प्रदान किया है। हरिऔध जी के शब्दों में-
” कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।”
जीवन परिचय (जीवनी)
कविकुल कमल दिवाकर सन्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन के बारे में डॉ० नगेन्द्र जी ने जन्मस्थल के बारे में लिखा है- (अ) राजापुर (बाँदा), (ब) सोरों (एटा), (स) सूकर क्षेत्र (आजमगढ़)। तुलसीदास जी सरयूपारी ब्राह्मण थे।
गोस्वामी तुलसीदास जी के पिता का नाम श्री आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। ऐसा कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसी दास जी का जन्म अभुक्तमूल नक्षत्र में होने से इनके माता-पिता ने इनका परित्याग कर दिया था। गोस्वामी तुलसीदास जी का बचपन बड़े कष्टों में बीता।
गोस्वामी तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था। सौभाग्यवश इनकी भेंट बाबा नरहरिदास जी से हो गई। जिनके साथ आप तीथों में घूमते रहे और विद्याध्ययन भी करते रहे। इनकी कृपा से तुलसीदास जी वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात हो गए। तुलसीदास का जीवन परिचय class 12 के विषय में यह दोहा विशेष प्रचलित है-
पन्द्रह सौ चौवन बिसै, कालिन्दी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो शरीर ॥
लोक नायक तुलसी दास जी का विवाह पं० दीनबन्धु पाठक की सुन्दर एवं विदुषी पुत्री रत्नावली के साथ हुआ था। गोस्वामी तुलसीदास जी अपनी पत्नी रत्नावली से अत्यन्त प्रेम करते थे। वे किसी क्षण भी पत्नी रत्नावली से दूर नहीं होना चाहते थे। गोस्वामी तुलसीदास जी की अनुपस्थिति में एक दिन गोस्वामी तुलसीदास जी की पत्नी अपने मायके चली गई। गोस्वामी जी इस वियोग को सहन न कर सके और वे भीषण वर्षा में नदी को एक शव के द्वारा पार करके रात के समय पत्नी के पास जा पहुँचे। उनकी ऐसी आसक्ति देखकर पत्नी रत्नावली ने इन्हें फटकारते हुए कहा-जितना प्रेम मुझसे करते हो, उतना प्रेम तुम राम से करो, जीवन धन्य हो जाएगा। जैसा कि—
“लाज न आवत आपको, दौरे आयेहु साथ।
धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहाँ मैं नाथ ॥
अस्थि चर्ममय देह मम, तामें ऐसी प्रीति ।
जो कहुँ होती राम में, होती न त भव-भीति॥”
पत्नी की ऊपर प्रस्तुत की गई भर्त्सना से तुलसीदास जी की अवधारा प्रभु राम की तरफ उन्मुख हो गई। वे विरक्त होकर काशी चले गए और अनेक तीर्थ स्थानों की यात्राएँ कीं, तथा गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन काशी, अयोध्या तथा चित्रकूट में अधिक व्यतीत हुआ। काशी के विद्वान शेष- सनातन से शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त कर सम्वत् 1981 वि० में अयोध्या में रहकर रामचरितमानस की रचना 7 काण्डों में प्रारम्भ की और इसे दो वर्ष सात माह में परिपूर्ण किया ।
अन्ततः कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी काशी के असी घाट पर सम्वत् 1680 वि० (सन् 1623 ई०) में अपना पार्थिव शरीर त्यागकर राममय हो गए। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में यह दोहा विशेष प्रसिद्ध है—
“सम्वत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यो शरीर।।”
तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ (कृतियाँ)—
कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी Tulsidas Ka Jivan Parichay in Hindi में रचनाएं लिखकर बोर्ड परीक्षा में अधिक अंक हासिल किए जा सकते हैं। गोस्वामी जी की 13 रचनाएँ प्रामाणिक मानी जाती हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. रामचरितमानस – रामचरितमानस ग्रन्थ तुलसीदास जी की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इसमें गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम-कथा को दोहा, सोरठा, चौपाई आदि छन्दों के द्वारा 7 काण्डों में प्रस्तुत किया है। विश्व साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों में रामचरितमानस की गणना आज भी की जाती है। इस महानतम ग्रन्थ में नवरसों के साथ वात्सल्य तथा भक्तिरस का भी सुन्दर परिपाक हुआ है।
2. श्रीकृष्ण गीतावली – कहा जाता है कि एक बार मथुरा में सूरदास से तुलसीदास जी की भेंट हो गई, धीरे-धीरे दोनों में प्रेम-भाव बढ़ गया। सूरदास से प्रभावित होकर तुलसीदास जी ने श्रीकृष्ण गीतावली की रचना कर डाली। इसमें 61 पदों में कवि ने पूरी श्रीकृष्ण-कथा को मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया है।
3. गीतावली – इसमें संकलित पदों की संख्या 230 है। गीतावली में श्रीराम जी के चरित्र का सुन्दर वर्णन मिलता है। श्रृंगार, करुण, वीर रस का अति सुन्दर वर्णन किया गया है।
4. विनय पत्रिका – विनय पत्रिका तुलसीदास जी की एक लोक प्रसिद्ध रचना है। विनय पत्रिका जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है विनय – अर्ज या प्रार्थना पत्रिका – पत्र । यह तुलसीदास जी की प्रौढ़तम कृति है। जो राम के दरबार में कलिकाल के विरुद्ध पेश की है। यह तुलसीदास जी का श्रेष्ठतम गीतिकाव्य है।
5. जानकी मंगल – इसमें लोकनायक तुलसीदास जी ने श्रीराम तथा जानकी के मंगलमय विवाहोत्सव का वर्णन किया है।
6. दोहावली – इसमें कवि के सूक्ति-संग्रह के दर्शन होते हैं। इसमें दोहों की संख्या 573 है। इसमें नीति, भक्ति के साथ-साथ राम-महिमा के उल्लेख से परिपूर्ण है।
7. कवितावली – भाव व भाषा की दृष्टि से ‘कवितावली’ तुलसीदास जी की सुन्दर रचना है। इसमें ‘रामचरितमानस’ की तरह 7 काण्डों के दर्शन होते हैं। इसमें राम कथा के साथ-साथ कृष्ण चरित की भी कविताएँ संकलित है।
इसके अतिरिक्त इन्होंने रामलला नहछू, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण, वैराग्य संदीपनी, पार्वती मंगल तथा हनुमान बाहुक की रचना की।
भाषा-शैली –
साहित्य के मार्तण्ड Tulsidas Ka Jivan Parichay भाषा शैली के बिना अधूरा है। कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी ब्रज तथा अवधी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। ‘विनय पत्रिका’ ब्रजभाषा में तथा श्रीरामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की है।
साहित्य के मार्तण्ड तुलसीदास जी ने तत्कालीन सभी काव्य शैलियों का प्रयोग अपने काव्य में किया है। अवधी को साहित्यिक रूप प्रदान करने के लिए तुलसीदास जी ने संस्कृत के शब्दों का भी यथास्थान प्रयोग किया है। इनके काव्य के कलापक्ष की पूर्णता को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि लोक नायक तुलसी दास जी संस्कृत भाषा के साथ-साथ काव्य शास्त्र, ज्योतिष के भी पण्डित थे।
कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी के राम रूपी अमृत का पान करके ही अगणित जन अमर हो गए। इस प्रकार तुलसीदास जी का साहित्यिक अवदान अद्भुत तथा चिरस्मरणीय है। इस प्रकार साहित्य के मार्तण्ड Tulsidas Ka Jivan Parichay पूर्ण हुआ । आशा है कि आप सभी को हमारा यह प्रयास पसंद आया होगा।
धनुष -भंग
दो0- उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बालपतंग |
बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग ॥1॥
नृपन्ह केरि आसा निसि नासी ।
बचन नखत अवली न प्रकासी ।।
मानी महिप कुमुद सकुचाने ।
कपटी भूप उलूक लुकाने ।।
भए बिसोक कोक मुनि देवा ।
बरसहिं सुमन जनावहिं सेवा ।।
गुर पद बंदि सहित अनुरागा ।
राम मुनिन्ह सन आयसु मागा ।।
सहजहिं चले सकल जग स्वामी ।
मत्त मंजु बर कुंजर गामी।।
चलत राम सब पुर नर नारी ।
पुलक पूरि तन भए सुखारी ।।
बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे।
जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे । ।
तौ सिवधनु मृनाल की नाईं।
तोरहु रामु गनेस गोसाईं ।।
दो0- रामहि प्रेम समेत लखि सखिन्ह समीप बोलाइ । सीता मातु सनेह बस बचन कहइ बिलखाइ ॥ 2 ॥
सखि सब कौतुक देखनि हारे ।
जेउ कहावत हितू हमारे ।।
कोड न बुझाइ कहइ गुर पाहीं ।
ए बालक असि हठ भलि नाहीं ।
रावन बान छुआ नहिं चापा।
हारे सकल भूप करि दापा ।।
सो धनु राजकुअँर कर देहीं ।
बाल मराल कि मंदर लेहीं । ।
भूप सयानप सकल सिरानी ।
सखि बिधि गति कछु जाति न जानी।।
बोली चतुर सखी मृदु बानी ।
तेजवंत लघु गनिअ न रानी ।।
कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा।
सोषेउ सुजसु सकल संसारा ।।
रबि मंडल देखत लघु लागा।
उदयँ तासु त्रिभुवन तम भागा ।।
दो0- मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब । महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब ॥3॥
काम कुसुम धनु सायक लीन्हे।
सकल भुवन अपने बस कीन्हे । ।
देबि तजिअ संसउ अस जानी।
भंजब धनुषु राम सुनु रानी ।।
सखी बचन सुनि भै परतीती।
मिटा बिषादु बढ़ी अति प्रीती ।।
तब रामहि बिलोकि बैदेही ।
सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही ।।
मनहीं मन मनाव अकुलानी ।
होहु प्रसन्न महेस भवानी ।।
करहु सफल आपनि सेवकाई ।
करि हितु हरहु चाप गरुआई ।।
गननायक बरदायक देवा ।
आजु लगें कीन्हिउँ तुअ सेवा ।।
बार बार बिनती सुनि मोरी ।
करहु चाप गुरुता अति थोरी ।।
दो0- देखि देखि रघुबीर तन सुर मनाव धरि धीर ।
भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर ॥4॥
नीके निरखि नयन भरि सोभा ।
पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु छोभा । ।
अहह तात दारुनि हठ ठानी।
समुझत नहिं कछु लाभु न हानी ।।
सचिव सभय सिख देइ न कोई ।
बुध समाज बड़ अनुचित होई । ।
कहँ धनु कुलिसहु चाहि कठोरा ।
कहँ स्यामल मृदुगात किसोरा । ।
बिधि केहि भाँति धरौं उर धीरा ।
सिरस सुमन कन बेधिअ हीरा ।।
सकल सभा कै मति भै भोरी ।
अब मोहि संभुचाप गति तोरी ।।
निज जड़ता लोगन्ह पर डारी ।
होहि हरुअ रघुपतिहि निहारी । ।
अति परिताप सीय मन माहीं ।
लव निमेष जुग सय सम जाहीं ।
दो0- प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि राजत लोचन लोल । खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल डोल ॥ 5 ॥
गिरा अनिलि मुख पंकज रोकी।
प्रगट न लाज निसा अवलोकी ।।
लोचन जल रह लोचन कोना ।
जैसें परम कृपन कर सोना । ।
सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी ।
धरि धीरजु प्रतीति उर आनी ।।
तन मन बचन मोर पनु साचा ।
रघुपति पद सरोज चितु राचा । ।
तौ भगवानु सकल उर बासी ।
करिहि मोहि रघुबर कै दासी । ।
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू ।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ।।
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना।
कृपानिधान राम सबु जाना । ।
सियहि बिलोकि तके धनु कैसें ।
चितव गरुड़ लघु ब्यालहि जैसें ।
दो0- लखन लखेड रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु । पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मंडु ॥6॥
दिसिकुंजरहु कमठ अहि कोला ।
धरहु धरनि धरि धीर न डोला । ।
राम चहहिं संकर धनु तोरा ।
होहु सजग सुनि आयसु मोरा ।।
चाप समीप रामु जब आए ।
नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए ।
सब कर संसउ अरु अग्यानू ।
मंद महीपन्ह कर अभिमानू ।।
भृगुपति केरि गरब गरुआई ।
सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई । ।
सिय कर सोचु जनक पछितावा ।
रानिन्ह कर दारुन दुख दावा ।।
संभुचाप बड़ बोहितु पाई ।
चढ़े जाइ सब संगु बनाई ।।
राम बाहुबल सिंधु अपारू ।
चहत पारु नहिं कोऊ कड़हारू ।।
दो0- राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि। चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि ॥ 7 ॥
देखी बिपुल बिकल बैदेही ।
निमिष बिहात कलप सम तेही ।।
तृषित बारि बिन जो तनु त्यागा।
मुएँ करइ का सुधा तड़ागा । ।
का बरषा सब कृषी सुखानें।
समय चुकें पुनि का पछितानें । ।
अस जियँ जानि जानकी देखी।
प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी।।
गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा ।
अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा ।।
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ।
पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ ।।
लेत चढ़ावत खैचत गाढ़ें।
काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें।।
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा ।
भरे भुवन धुनि घोर कठोरा । ।
छन्द –
भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले । चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरूम कलमले ॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं ॥
वन-पथ पर
पुर तें निकसी रघुबीर – बधू, धरि धीर दये मग में डग द्वै ।
झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सूख गये मधुराधर वै।।
फिर बूझति हैं- ‘चलनो अब केतिक, पर्णकुटी करिहों कित है?’
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै ।। 1 ।।
“जल को गये लक्खन हैं लरिका, परिखौ, पिय! छाँह घरीक हवै ठाढ़े।
पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिहौं भूभुरि डाढ़े।।
‘ तुलसी रघुवीर प्रिया स्रम जानि कै बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।
जानकी नाह को नेह लख्यौ, पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े ।। 2 ।।
रानी मैं जानी अजानी महा, पबि पाहन हूँ ते कठोर हियो है।
राजहु काज अकाज न जान्यो, कह्यो तिय को जिन कान कियो है ।।
ऐसी मनोहर मूरति ये, बिछुरे कैसे प्रीतम लोग जियो है ? आँखिन में, सखि! राखिबे जोग, इन्हें किमि कै बनबास दियो है ? ।। 3 ।।
सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी सी भौंहें ।
तून सरासन बान धरे, तुलसी बन-मारग में सुठि सोहैं। सादर बारहिं बार सुभाय चितै तुम त्यों हमरो मन मोहैं।
पूछति ग्राम बधू सिय सों ‘कहौ साँवरे से, सखि रावरे को है ? ‘ ।। 4 ।।
सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।
तिरछे करि नैन दें सैन तिन्है समुझाइ कछू मुसकाइ चली । ।
तुलसी तेहि औसर सोहैं सबै अवलोकति लोचन – लाहु अली ।
अनुराग-तड़ाग में भानु उदै बिगसीं मनो मंजुल कंज – कली || 5 ||
तुलसी जी का जन्म कब और कहां हुआ?
संवत् 1554 में चित्रकूट जिले के राजापुर में श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन को कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ था।
तुलसी जी का जन्म कब हुआ था?
संवत् 1554 में साहित्य के मार्तण्ड तुलसी जी का जन्म हुआ था।
तुलसीदास के पिता का नाम बताइए।
साहित्य के मार्तण्ड तुलसीदास जी के पिता जी का नाम आत्माराम दुबे था ।
तुलसीदास जी के कितने बच्चे थे?
तुलसीदास जी के 1 पुत्र था जिसका नाम तारक था।
विनय पत्रिका के रचनाकर कौन है?
विनय पत्रिका के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी है।
विनय पत्रिका की रचना कब हुई थी?
विनय पत्रिका भक्ति काल में लिखी गई कविता संग्रह है जो कि ब्रजभाषा से ओतप्रोत है। अर्थात ब्रज भाषा में इसका संपादन किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा सोलहवीं शताब्दी में विनय पत्रिका की रचना की गई।
विनय पत्रिका का एक अन्य नाम क्या है?
विनय पत्रिका का एक अन्य नाम राम विनयावली भी है।
रामचरितमानस के रचनाकार कौन हैं?
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस नाम के पवित्र ग्रंथ की रचना की है।
तुलसीकृत रामायण में कितने दोहे हैं?
तुलसीकृत रामायण में 1074 दोहे है।
दोहावली की रचना कब हुई थी?
दोहावली – दोहों का एक सुंदर संग्रह है । दोहावली की रचना काल 1626 सन् से लेकर 1680 सन् तक माना जाता है क्योंकि इसे समय-समय पर लिखा गया है।
तुलसी की दोहावली में कुल कितने दोहे हैं?
गोस्वामी तुलसी दास जी की दोहावली में कुल 573 दोहे संकलित हैं।
जानकी मंगल का काव्य रूप क्या है?
जानकी मंगल में गोस्वामी तुलसीदास जी ने आदिशक्ति भगवती श्री जानकी जी अर्थात् माता सीता जी का और रघुकुल शिरोमणि , दशरथ नंदन , मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भगवान के मंगलमय विवाहोत्सव का बहुत ही रसमय पूर्ण एवं सरस शब्दों में वर्णन किया है।
पार्वती मंगल की भाषा कौन सी है?
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित पार्वती मंगल की भाषा अवधी है।
पार्वती-मंगल किसकी रचना है
पार्वती-मंगल गोस्वामी तुलसीदास जी की रचना है।
कृष्ण गीतावली में कितने पद हैं?
कृष्ण गीतावली में 62 पदों का समावेश है।
कृष्ण गीतावली में किसका वर्णन है?
कविकुल कमल दिवाकर सन्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने ब्रज भाषा में कृष्ण गीतावली नामक गीत काव्य की रचना की है। कृष्ण गीतावली गीत काव्य में भगवान श्रीकृष्ण जी की महिमा का और भगवान श्रीकृष्ण जी लीला का अतिसुंदर वर्णन किया गया है।
तुलसीदास जी किस शाखा के कवि हैं?
कवि चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी भक्तिकाल की सगुण धारा के रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि के रूप में जाने जाते हैं।
तुलसीदास कितने वर्ष जीवित रहे?
गोस्वामी तुलसीदास 126 वर्ष जीवित रहे ।